Monday, January 24, 2011

हाँ देश में लोकतंत्र अपना जनाधार खो रहा है...


२६ जनवरी २०११ को हमारा गणतंत्र ६२ वर्ष का हो गया...यह गणतंत्र  दिवस कई प्रश्नों के साथ आया है बड़ा प्रश्न यह है की क्या देश गणतंत्र हो गया..??? जो कल्पना थी बापू की, जो कल्पना की थी लोकतंत्र के ग्रन्थ "संविधान" के रचनाकर आंबेडकर जी ने... क्या ये वही राष्ट्र है...जिसके संविधान मे देश के नागरिकों को स्वतंत्र घोषित किया गया था....लिखा था...यह एक लोकतंत्रात्मक गणराज्य या संप्रभु राष्ट्र है...यह सत्य है..??? क्या यह मान लें की "इस देश का भगवान ही मालिक है" देश की सर्वोच्च न्यायलय ने सही कहा है..??? या यह कह दिया जाये  की यह देश जिसकी लाठी उसकी भेंस की तर्ज पर चल रहा है...अर्थात जिसके  हाथ मे सत्ता वो संविधान से ऊपर हो गया... तिरंगे से बढ़कर हो गया...उनके लिए...संविधान के अंश रद्दी कागज पर लिखे ओचित्य हिन शब्दों की तरह हो गया... लगता है की इस देश मे लोकतंत्र है भी या नहीं...ये देश आजादी के बाद से ही एक परिवार की की बपोती हो गया... लगता नेहरु उर्फ़ वर्तमान गाँधी परिवार ने देश पर शासन करने का पेटेंट करा लिया है...आंबेडकर जी ने आरक्षण पिछड़े देश के कुछ पिछड़े देशवासियों को मुख्य धारा मे लाने के लिए दिया था.. ताकि उन पिछड़ चुके देशवासियों को स्वतंत्र होने का अहसास दिलाया जा सके... लेकिन ये आरक्षण सत्ता हथियाने का हथियार हो गया...अब मुस्लिम वोटों का गणित लगा कर उन्हें आरक्षण देने का प्रयास शुरू हो गया है...राजस्थान मे केवल एक समाज ने पुरे देश को हलाकान कर दिया... कल्पना कीजिये यदि एसा संघर्ष हर समाज ने छेड़ दिया तो...???आर्थिक आधार पर गरीब पिछड़ेपन पर आधारित आरक्षण देने के मुद्दे पर सबकी चुप्पी है...हाँ लोकतंत्र में कोन अपना जनधार खोना चाहेगा...लेकिन भरे मन से यह कहना पड़ता है...हाँ इस देश में लोकतंत्र अपना जनाधार खो रहा है...देश का वो युवा जिसे सब भाग्य विधाता कहते है  उसकी पढाई के लिए लोन आज कार खरीदने से  महंगा है और जटिल है...चार लाख करोड़ रुपये भ्रष्टाचार चाट गया...करोड़ों युवा बेरोजगारी की मार के चलते या तो गलत मार्ग चुन रहे है... या प्रतिभा को अवसरों को कमी के चलते...देश छोड़कर भागने को मजबूर है...और राजनितिक दल केवल सत्ता प्राप्ति ले जतन में लगे है...किसान आत्महत्या करते है तो बजाय कारण जानकर समाधान खोजने के सरकार को घेरने की तयारी हो जाती है..हत्या पर सियासत शुरू हो जाती है...जबकि संविधान में रचनात्मक विपक्ष की कल्पना में स्पष्ट कहा गया है की "विपक्ष सरकार को निरंकुश होने से रोकेगा साथ ही देश हित या राष्ट्रीय समस्या पर समाधान खोजना भी उसका दायित्व होगा सरकार के सुशासन देने में सहयोग करेगा...गलत नीतियों का विरोध भी करेगा " लेकिन यह असंभव हो गया है क्यों की यहाँ सब कुछ स्वार्थ और अर्थ से जुड़ गया है...देश में राष्ट्रीय एकता और अखंडता को भी नजर सी लग गयी है...नए राज्यों के निर्माण को लेकर लगातार होने वाले आंदोलनों से भय सा लगने लगा है...कहीं ये राज्यों की मांग करने वाले आन्दोलन विदेशी ताकतों के हाथ पड़कर किसी दिन अलग देश की मांग न कर बैठे....विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र के लिए राष्ट्रिय सुरक्षा भी मुद्दा बन गया और चुनोती भी... कश्मीर के हालात जगजाहिर है....देश भर में..जब चाहे जहाँ चाहे बम के धमाके कर भारत को भर में चुनोती देकर चले जाते है... गिरफ़्तारी होने पर भी उन्हें नाजों से पाला जाता है...संसद पर हमले का दोषी हमारी जेल में बंद होने के बाद भी हम उसे फासी देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे... कसाब की सेवा में आज भी देश का करोड़ों रूपया बर्बाद हो रहा है...तीस्ता, अरुंधती, बुखारी..यासीन जैसे  लोग तो देश और संविधान से भी बढ़कर हो गए...जिस देश में देश का झंडा तिरंगा नहीं फहरा सकते उसे लोकतंत्र नहीं कहा जा सकता... जहाँ कृषि अर्थव्यवस्था का आधार हो फिर भी किसान कर्ज से मरे जा रहे हो... जहाँ बचपन मजदूरी में बीत रहा हो...जहाँ लाखों तन..बिना कपड़ों के हो... लाखों तन अनाज सड़ गल रहा लेकिन लोग भूख के कर्ण मर रहे हो... वहां लोकतंत्र मजबूत नहीं  बेचारा हो गया है कमजोर हो गया है है...और इस बेचारे लोकतंत्र की मजबूत कड़ी कोई हो सकती है तो वो इस देश की युवा शक्ति....!!!         
  

Sunday, January 23, 2011

तिरंगा फहराने से कोई नहीं रोक सकते....दम हो तो राहुल और उमर भी जाये लाल चौक तिरंगा फहराने

 26 जनवरी को  गणतंत्र दिवस है...भारत का अपना संविधान लागु हुआ  था....देश का राष्टीय ध्वज तिरंगा होगा...
 यह भी संविधान मे कहा गया  है...., तिरंगा हमारे स्वाभिमान का प्रतिक है....
 हमारे देश का प्रतिक है, वह आन बान और शान का प्रतिक है... उसके लिए लाखों माताओं  की गोद इसलिए सुनी हुई थी की तिरंगा इस देश मे शान से फहराया जा सके.... ,लाखों नव विवाहिताओं  की मांग का सिंदूर इसी तिरंगे को सम्मान से फहराएँ जाने के अधिकार के लिए कुर्बान हो गया...,कई बहनों की राखी कलाई को तरस रही थी क्यों की वो कलाई देश हित मे उठी थी जिसे अंग्रेजों ने काट दिया....लाखों बच्चों को इसी तिरंगे के खातिर अनाथ होना पड़ा... कई तो माँ की कोख मे ही थे और पिता  का साया उठ गया...कई विधवाओ युवतियों की अस्मिता से खेला गया क्यों की वो तिरंगे को ऊसका हक़ दिलाने की जंग मे अपने पिता,भाई,पति और बेटे से कदम ताल कर रही थी...कई बूढ़े माँ बाप इसलिए दम तोड़ चुके थे की उनका बुढ़ापे सहारा कोई नहीं बचा था...लेकिन आज वो तिरंगा आज भारत के एक प्रदेश मे फहराना चुनोती बन गया... वहां तिरंगा फहराने पर एसा माहोल तैयार किया जा रहा है जैसे कुछ युवा तिरंगा फहराने पाकिस्तान जा रहे हो....यासीन मालिक जैसे गुंडे आज तिरंगा न फहराने की चुनोती देकर भी छुट्टे घूम रहे है....तिरंगा फहराने जाने वालों को रोकने के लिए तिन हजार से अधिक सैनिक  तैनात किये जा रहे है...मुझे  समझ नहीं आ रहा  की   लाल चोक पर पाकिस्तानी झंडा  फहराया जाये तो हंगामा नहीं होगा और तिरंगा फहराने की बात आती है तो बवाल खड़ा कर दिया जाता है...विश्व का एस कोनसा देश है जहा के युवा वहां का झंडा नहीं फहरा सकते...आखिर क्यों कश्मीर के लाल चौक मे तिरंगा नहीं फहराया जा सकता...तिरगा भारत मे नहीं तो क्या पाकिस्तान इटली या वाशिंगटन मे फहराया जायेगा...दुर्भाग्य है देश का  भारतीय तिरंगा जला दिया  जाये लेकिन.... "वन्दे मातरम"  कहना  सांप्रदायिक हो गया....कश्मीर मे पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे खुलेआम लगाओ लेकिन भारत माता की जय कहना जैसे गुनाह  हो  गया....आतंकवादी  अफजल को फासी दी तो देश जल उठेगा...कसाब को सूली पर टांगा तो कश्मीर धधक उठेगा...कश्मीर के भारत मे  विलय प्रश्न खड़े करने वाली अरुंधती पर प्रकरण दर्ज नही किया गया...तब भी मसला कश्मीर को लेकर था.. सवाल देश पर था...किन्तु तब उमर अब्दुल्ला ने क्यों...अरुंधती को गिरफ्तार करने के आदेश नहीं दिए..आखिर क्यों... तिरंगा जलाने वाले... पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने वाले...अफजल,कसाब के समर्थन मे बोलने वालों को आज तक जेल की सलाखों...मे बंद नहीं किया....????  आखिर क्यों अफजल को फासी नहीं दी जा रही...??? क्यों बटला हॉउस के शहीद की शाहदत पर प्रश्न चिन्ह लगाया जाता है...??? कांग्रेस चाहती है क्या है...उसे स्पष्ट करना चाहिए...क्या वह नहीं चाहती की लाल चौक पर पाकिस्तानी झंडे की जगह भर का तिरंगा लहराए...??? अगर हाँ तो उसे चाहिए...  भाजपा और कांग्रेस की राजनितिक प्रतिद्वंदिता से उठकर लाल चोक पर तिरंगा फहराने जाने जाने वाले युवाओं  को सुरक्षा देने के लिए... फौज की तैनाती करे न की तिरंगा फहराने जाने वालों को रोकने हेतु...
कांग्रेस को डर है की कही भाजपा को इसका रानीतिक लाभ न हो  जाये  तो उसे राहुल और उमर अब्दुल्ला को भी तिरंगा फहराने हेतु लाल चोक भेज देना चाहिए...लेकिन याद रहे भारत के युवाओ की नसों मे रक्त अभी  शेष है और जब तक भारत के लहू मे गर्मी और धमनियों श्वास शेष है.. तब तक कश्मीर तो क्या देश सीमा पर भी तिरंगा फहराने से   कोई नहीं रोक सकते....

अब युवा शक्ति कॆ गर्जन सॆ, संसद की दीवारॆं थर्रानॆं दॊ !!
काश्मीर के जर्रे-जर्रे मॆं अब, राष्ट्र-तिरंगा फ़हरानॆ दॊ..... !!

आओ  तिरंगा लाल चौक पर फहराएँ....अपना "युवधर्म" निभाए...