Monday, July 8, 2013

राजनीतिक क्षतिपूर्ति के लिए नहीं, सुदृढ़ भारत की जरूरत है युवा नेतृत्व...



              
छात्र कल का नहीं आज का नागरिक है। यह दर्शन विकसित करने वाले छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना आज 9 जुलाई 1949 को हुई थी। देश के पहले पंजीकृत छात्र संगठन ने यह वाक्य इसीलिये कहा था कि छात्र को देश का भविष्य और कर्णधार भी कहा जाता है और इस कर्णधार की देश को आज जरूरत है। छात्र राजनीति छात्र आंदोलनों का विश्व में लम्बा इतिहास है। यह शाश्वत सत्य है कि जब-जब छात्र सड़कों पर आया है, परिवर्तन हुआ है, चीन का छात्र आंदोलन हो या भारत की आजादी की लड़ाई अथवा भारत में आपातकाल के खिलाफ आंदोलन, जिसमें हमेशा गैर छात्रों ने अपनी हमेशा महती भूमिका निर्वहन की है, और यही कारण है कि 1970 से 90 के दशक के दौर में छात्र नेता रहा नेतृत्व आज भारतीय राजनीति के शीर्ष पर है। 1995 के बाद छात्र राजनीति का तेज धूंधला पड़ने लगा। छात्र आंदोलनों की जगह परिसरों में वैचारिक संघर्ष और दलीय राजनीति ने ले लिया। देशभर में प्रत्यक्ष प्रणाली से छात्र संघ चुनावों पर रोक लगाकर स्वाभाविक नेतृत्व कुंद देने का षड़यंत्र सफल प्रतीत होने लगा। अब परिसरों मं वही छात्र नेता पनपेगा, जो राजनीतिक प्रश्रय की छांव पलेगा, बढ़ेगा। छात्र राजनीति को पंगु बनाने के पीछे का उद्देश्य नया नेतृत्व खड़ा होने देने की मानसिकता भी है।

देश में आपातकाल के दौरान छात्र शक्ति राष्ट्र शक्ति के रूप में प्रकट हुई, उसे छात्र राजनीति का स्वर्णीम काल कहा जा सकता है। आज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को छोड़कर अन्य कोई संगठन राजनीति से पृथक अस्तित्व बनाने में कामयाब नहीं हो पाया। कांग्रेस का छात्र संगठन हो या कम्युनिस्ट विचार के वाहक छात्र संगठन राजनीतिक दलों की छात्र इकाई के रूप में ही अपनी-अपनी पहचान बन पाई है।
आज जब राजनीति पी4 अथवा पद, पावर, पैसा, प्रतिष्ठा तक सिमट कर रह गई है। इस समय युवा नेतृत्व की देश को बेहद जरूरत है और यह खालीपन भरने की अपेक्षा छात्र संगठनों से ही की जा सकती है, क्योंकि बांगलादेश में घुसपैठ का मुद्दा हो या अरूणाचल में चीन की उपस्थिति अथवा देश की आत्मा को उद्वेलित कर देने वाले घोटाले-घपले जैसे कई मुद्दों पर एबीवीपी एकमात्र छात्र संगठन है, जिसने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। शेष छात्र संगठन चूंकि राजनीतिक दलों का साया बनकर काम करते हैं, इसलिए उन्हें अपने दल के हितों को ध्यान में रखकर ही मुद्दों पर अपना  प्रकट करना होता है या यह कहना उचित होगा कि वे छात्रों के बीच राजनीतिक दल का प्रतिनिधित्व भर करते हैं। युवा नेतृत्व छात्र राजनीति से ही आता है और छात्र राजनीति को राजनीति की पहली पाठशाला माना जाता है। यही कारण है कि वर्तमान राजनीति राजनीतिज्ञों का वह चेहरा है, जिससे जनमानस घृणा की दृष्टी से देखता है। इस छवि के कारण ही राजनीति से युवाओं का मोह भंग हुआ है। लेकिन देश समाज से जुड़े मुद्दों को लेकर वह आज भी उतना ही चेतन्य और सजग है, जितना आजादी की लड़ाई, आपातकाल के समय था, उसकी संवेदनशीलता में कमी नहीं है।
अन्ना के आंदोलन में यही युवा था, जो भ्रष्टाचार से देश की दुर्दशा पर पीड़ा प्रकट करते हुए हाथों में तिरंगा लेकर सड़क पर उतर आया था। वह आज भी सत्ता को चुनौति देने में सक्षम है।
वह उस रिक्तता की पूर्ति करने में सक्षम है, जो भारतीय राजनीति में आई है,जिसे वंशानुगत या कृत्रिम नेतृत्व द्वारा भरे जाने का प्रयास किया जा रहा है। बस उसे अवसर और स्थान दिया जाये, फिर देखते ही देखते स्वाभाविक युवा नेतृत्व की एक लम्बी पीढ़ी नेतृत्व को तैयार दिखाई देगी। इसीलिये जरूरी है कि देश में लिंगदोह कमेटी की अनुशंसा के आधार पर प्रत्यक्ष प्रणाली से छात्र संघ चुनाव आरंभ किये जायें।
देश की नब्ज कह रही है युवा आए नेतृत्व संभाले, क्योंकि देश की वर्तमान सरकार के क्रियाकलापों ने जनमानस में राजनेता राजनीति के प्रति एक खीज उत्पन्न की है। वह इन चेहरों से छुटकारा चाहता है, बदलाव चाहता है। देश जानता है कि यह बदलाव युवा पीढ़ी ही ला सकती है और बेहतर युवा नेतृत्व तभी उभरेगा, जबकि छात्र नेतृत्व को पनपने के पर्याप्त अवसर दिए जाएँ।
छात्र राजनीति से निकलने वाला नेतृत्व केवल राजनीतिक क्षतिपूर्ति के लिए नहीं वरन् सुदृढ़ भारत की भी जरूरत है।

                                                                                          -हितेश शुक्ला