Wednesday, September 3, 2014

नियति के अन्याय का एक वर्ष...




                  मेरे बड़े  भाई  श्री सुरेन्द्र शुक्ला जिनका जन्म 1 नवम्बर 1976  को हुआ ! 5  सितम्बर 2013  को इस लोक से विदा ले ली ! उनको  इस दुनिया से गए को 5  सितम्बर 2014  को  एक वर्ष  हो जायेगा ! बस यादे भर  शेष है "नियति का  अन्याय ..." में नियति के अन्याय का एक वर्ष...बीत जाने के बाद के हालात और उनकी यादों को साझा करूँगा !
दुनिया  मेरे लिए उनका जाना  केवल  भाई का न होना ही नही बल्कि मेरी ताकत ,क्षमता, आत्म विश्वास का चले जाना है  ! मेरे बड़े भाई से बढ़ कर पिता की तरह थे जिन्होंने मेरे लिए पढाई छोड दी और मुझे खुले आकाश में उड़ने का अवसर दिया ! अवसर ही नही दिया खुद पर अंकुश लगा कर मुझे हर वो चीज उपलब्ध  करवाने की कोशिश  की जिसकी मुझे जब जरूरत लगी  ! वरना घर के हालात ऐसे न थे की में अपने मन की कर सकूँ ! आज में जहाँ हूँ  जो कुछ थोड़ा बहुत पाया है  या जो कुछ कर पा रहा हूँ  चाहे वह परिवार , समाज या खुद के लिए वह सब उनका दिया उनका सिखाया या उनके कारण है ! उन्होंने जीवन में हर पल सिखाया ! वे मेरे गुरु की तरह थे केवल किताबी नही जिंदगी के हर पहलु पर सिखाते रहे   मेने जबसे समझना शुरू किया तब से लेकर जब तक की उन्होंने अपने जीवन की  अंतिम साँस न ले ली.. शायद  ही मुझसे भाग्यशाली भाई कोई इस दुनिया में होगा जिसे मेरे भाई की तरह भाई मिले हो ! शायद ही कोई इतना दुर्भाग्य शाली इंसान होगा जो अपनी आँखों के सामने अपने भाई को जाते हुए देखता रहा पर कुछ  न  कर सका.… में उनकी यादें अपनी लेखनी से कुछ किश्तों में  उतारने की कोशिश करूँगा !  ताकि मेरे भाई के बारे आप भी  जान सके  की वाकई उनके जैसा  भाई शायद ही किसी को मिले या मिला हो ! और मेरे द्वारा की गयी उनकी तारीफ केवल किसी के जाने के बाद की औपचारिकता मात्र नही है...{निरंतर}

Thursday, August 28, 2014

" धारा ३७० राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौती "

               
                                               अस्थायी अनुच्छेद है 370

भारत के एक राज्य के रूप में जम्मू.कश्मीर का 1947 से सम्बंध है लेकिन संविधान में अनुच्छेद 370 के अन्तर्गत कश्मीर को विषेष राज्य का दर्जा दिया गया लेकिन इस धारा के कारण भले ही कहा जाय कि जम्मू.कश्मीर  को विषेष राज्य का दर्जा है लेकिन वास्तविकता कुछ और है इस अनुच्छेद के कारण भारत का सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) के आदे से लगा कर भारतीय संसद द्वारा बनाए गए कोई भी कानून मानने को कश्मीर की सरकार बाध्य  नही है।
7 अक्तूबर 1949 को कश्मीर मामलों को देख रहे मंत्री गोपालस्वामी अयंगार ने भारत की संविधान सभा में अनुच्छेद-306(ए) (वर्तमान अनुच्छेद-370) को प्रस्तुत किया। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा संविधान का जो मूल पाठ (ड्राफ्ट) प्रस्तुत किया गया था, उसमें यहअनुच्छेद-306(ए) सम्मिलित नहीं था। डॉ. अंबेडकर ने संविधान सभा में इस विषय पर एक भी शब्द नहीं बोला।
जब पं. नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को इस विषय पर बात करने के लिये डा. अम्बेडकर  के पास भेजा तो उन्होंने स्पष्ट रूप से शेख को कहा ”तुम यह चाहते हो कि भारत कश्मीर की रक्षा करे, कश्मीरियों को पूरे भारत में समान अधिकार हों, पर भारत और भारतीयों को तुम कश्मीर में कोई अधिकार नहीं देना चाहते। मैं भारत का कानून मंत्री हूं और मैं अपने देश के साथ इस प्रकार की धोखा-धड़ी और विश्वासघात में शामिल नहीं हो सकता।”
गोपालस्वामी अयंगार और मौलाना हसरत मोहानी के अतिरिक्त संविधान सभा में इस पर हुई बहस में किसी ने भी भाग नहीं लिया, यहां तक कि जम्मू-कश्मीर से चुने गये चारों सदस्य वहां उपस्थित होते हुए भी चुप रहे ।
कांग्रेस कार्यसमिति में कुछ ही दिन पूर्व इस प्रस्ताव पर दो दिन तक चर्चा हुई थी जिसमें गोपालस्वामी अयंगार अकेले पड़ गये। केवल मौलाना अब्दुल कलाम आजाद उनके एकमात्र समर्थक थे जिनको सबने चुप करा दिया था। ऐस माना जाता है कि नेहरू जी को इस आक्रोश का अंदाजा था, इसलिये वे पहले से ही विदेश यात्रा के नाम पर बाहर चले गये और अंत में अनमने भाव से नेहरू जी का सम्मान रखने के लिए सरदार पटेल को अयंगार के समर्थन में आना पड़ा और कांग्रेस दल ने नेहरू की इच्छा का सम्मान करते हुये इस अनुच्छेद को संविधान में शामिल करने का निर्णय लिया।
अनुच्छेद-370 : जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का 1951 में गठन किया गया।
जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान अनुच्छेद-370 की उत्पत्ति है। कांग्रेस ने ऑटोनामी (स्वायत्तता) के नाम पर शेख अब्दुल्ला के सामने घुटने क्यों टेके, जिसके अंतर्गत 1952 में पं. नेहरू ने निम्न बातों को स्वीकार किया
अनुच्छेद 370(ए) में प्रदत्त अधिकारों के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के अनुमोदन के पश्चात् 17 नवम्बर 1952 को भारत के राष्ट्रपति ने अनुच्छेद-370 के राज्य में लागू होने का आदेश दिया।

·          शेष भारत के निवासी जम्मू-कश्मीर में न तो सरकारी नौकरी प्राप्त कर सकते हैं और न ही जमीन खरीद सकते हैं। उनको राज्य के अंतर्गत वोट देने का अधिकार भी नहीं है।.
·         • जम्मू-कश्मीर राज्य का अलग संविधान व अलग झंडा रहेगा। भारत के राष्ट्रीय ध्वज के समान ही जम्मू-कश्मीर के राज्य ध्वज को राज्य में सम्मान प्राप्त होगा।
·         • मुख्यमंत्री, राज्यपाल के स्थान पर जम्मू कश्मीर में सदरे रियासत (राज्य अध्यक्ष), वजीरे आजम (प्रधानमंत्री) कहलाये जायेंगे।
·         • स्थायी निवासी प्रमाण पत्र की व्यवस्था, जिसके द्वारा शेष भारत का व्यक्ति जम्मू-कश्मीर में बस नहीं सकेगा, परन्तु जम्मू-कश्मीर का व्यक्ति देश में कहीं भी जाकर बस सकता है।
·         • सदरे रियासत का चुनाव जम्मू-कश्मीर की विधानसभा करेगी, राष्ट्रपति केन्द्र सरकार की सलाह पर सदरे रियासत अर्थात राज्यपाल को नियुक्त नहीं कर सकेगा।
·         • सर्वोच्च न्यायालय का दखल कुछ ही क्षेत्रों में सीमित रहेगा।
·         • भारत का चुनाव आयोग, प्रशासनिक सेवा अधिकरण (आई.ए.एस एवं आई.पी.एस.), महालेखा नियंत्रक के अधिकार क्षेत्र में जम्मू-कश्मीर नहीं रहे !

                                      दुष्प्रचार....
यह झूठा दुष्प्रचार है कि महाराजा हरिसिंह बाकी राजाओं की तरह रियासत को भारत के साथ एकात्म नहीं करना चाहते थे।जम्मू-कश्मीर के संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट कहा गया है-हम जम्मू-कश्मीर के लोगों ने एकमत से स्वीकार किया है, …… 26 अक्तूबर 1947 के जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के उपरांत पुनर्परिभाषित करते हैं कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है,…             हम भारत की एकता-अखंडता के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
महाराजा हरिसिंह ने उसी विलय प्रपत्र पर हस्ताक्षर किये, जिस पर शेष 568 रियासतों ने हस्ताक्षर किये थे। इस प्रपत्र का मसौदा उस समय के गृह मंत्रालय द्वारा तैयार किया गया था, जिसे लेकर स्वयं गृह सचिव वी.पी. मेनन महाराजा हरिसिंह के पास आये थे।
{ चित्र - जम्मू कश्मीर   का  भारत संघ में  संम्पूर्ण विलय का पत्र }


                                कश्मीरियों के ही विरू़द्ध है धारा 370

1 जम्मू.कश्मीर मे महिलाओं पर शरिया कानून लागू होता है यदि काष्मीर की लडकी किसी भारत के अन्य राज्य के युवक  से विवाह करती है तो उसकी नागरिकता छिन जाएगी वही पाकिस्तानी लडके से शादी कर ले तो उसकी नागरिकता यथावत रहेगी
2. जम्मू.कश्मीर में हिन्दू एवं सिख समूदाय अल्पसंख्यक (16 प्रतिशत) है फिर भी उन्हे आरक्षण नही दिया जाता है
 3 जम्मू.कश्मीर  न सूचना अधिकार, अनिवार्य शिक्षा एवं मनरेगा जैसी योजनाएं भी लागू नही हो सकती इसके कारण बेरोजगारी भूखमरी और अशिक्षा है
              मंडल आयोग की रिपोर्ट न लागू होने के कारण यहां पिछड़ी जातियों को आरक्षण नहीं है
  • 1947 से 2007 तक कश्मीर घाटी में हरिजनों को कोई आरक्षण प्राप्त नहीं हुआ। सर्वोच्च न्यायालय के 2007 के निर्णय, जिसके अंतर्गत हरिजनों को कश्मीर घाटी में आरक्षण प्राप्त हुआ, को भी सरकार ने विधानसभा में कानून द्वारा बदलने का प्रयास किया, जो जनांदोलन के दबाव में वापिस लेना पड़ा।
·         संपत्ति कर, उपहार कर, शहरी संपत्ति हदबंदी विधेयक (Wealth tax, Gift tax, Urban Land Ceiling Act)  आदि कानून लागू नहीं होते।
  • शासन के विकेन्द्रीकरण के 73 एवं 74 वें संविधान संशोधन को अभी तक लागू नहीं किया गया। गत 67 वर्षों में केवल 4 बार पंचायत के चुनाव हुए।
  • आज भी भारतीय संविधान की 135 धारायें यहां लागू नहीं हैं। यहां भारतीय दण्ड विधान (Indian Penal Code ) के स्थान पर रणवीर पैनल कोड (आर.पी.सी.) लागू है।
  • अनुसूचित जनजाति के समाज को राजनैतिक आरक्षण अभी तक प्राप्त नहीं है।
  • कानून की मनमानी व्याख्याओं के कारण जम्मू व लद्दाख को विधानसभा व लोकसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। जम्मू का क्षेत्रफल व वोट अधिक होने के बाद भी लोकसभा व राज्य विधानसभा में प्रतिनिधित्व कम है। लेह जिले में दो विधानसभाओं का कुल क्षेत्रफल 46000 वर्ग किमी. है।
  • सारे देश में लोकसभा क्षेत्रों का 2002 के पश्चात पुनर्गठन हुआ, परन्तु जम्मू-कश्मीर में नहीं हुआ।
  • यहां विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष है जबकि पूरे देश में यह 5 वर्ष है।
·         भारत के राष्ट्रपति में निहित अनेक आपातकालीन अधिकार यहां लागू नहीं होते।008 में राज्य को प्रति व्यक्ति केन्द्रीय सहायता 9754 रूपये थी जबकि बिहार जैसे बड़े राज्य को 876 रूपये प्रति व्यक्ति थी। कश्मीर को इसमें से 90 प्रतिशत अनुदान होता है और 10 प्रतिशत वापिस करना होता है, जबकि शेष राज्यों को 70 प्रतिशत वापिस करना होता है।
                                                जम्मू से भेदभाव
जम्मू क्षेत्र के 26 हजार वर्ग किमी. क्षेत्र में 2002 की गणनानुसार 30,59,986 मतदाता थे। आज भी 2/3 क्षेत्र पहाड़ी, दुष्कर, सड़क-संचार-संपर्क से कटा होने के पश्चात भी 37 विधानसभा क्षेत्र हैं व 2 लोक सभा क्षेत्र। जबकि कश्मीर घाटी में 15,953 वर्ग किमी. क्षेत्रफल, 29 लाख मतदाता, अधिकांश मैदानी क्षेत्र एवं पूरी तरह से एक-दूसरे से जुड़ा, पर विधानसभा में 46 प्रतिनिधि एवं तीन लोकसभा क्षेत्र हैं।
                                  अस्थायी अनुच्छेद 370 के दुष्परिणाम
1947 में जम्मू-कश्मीर में पश्चिम पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थी (आज लगभग दो लाख) अभी भी नागरिकता के मूल अधिकारों से वंचित हैं, जबकि तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला ने ही खाली पड़ी सीमाओं की रक्षा के लिए यहां उनको बसाया था। इनमें अधिकतर हरिजन और पिछड़ी जातियों के हैं। इनके बच्चों को न छात्रवृति मिलती है और न ही व्यावसायिक पाठयक्रमों में प्रवेश का अधिकार है। सरकारी नौकरी, संपत्ति क्रय-विक्रय तथा स्थानीय निकाय चुनाव में मतदान का भी अधिकार नहीं है। 63 वर्षों के पश्चात भी अपने ही देश में वे गुलामों की तरह जीवन जी रहे हैं।
  • शेष भारत से आकर यहां रहने वाले व कार्य करने वाले प्रशासनिक, पुलिस सेवा के अधिकारी भी इन नागरिकता के मूल अधिकारों से वंचित है। 30-35 वर्ष इस राज्य में सेवा करने के पश्चात भी इन्हें अपने बच्चों को उच्च शिक्षा हेतु राज्य से बाहर भेजना पड़ता है और सेवानिवृति के बाद वे यहां एक मकान भी बनाकर नहीं रह सकते।
  • 1956 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री बख्शी गुलाम मुहम्मद ने जम्मू शहर में सफाई व्यवस्था में सहयोग करने के लिये अमृतसर (पंजाब) से 70 बाल्मीकि परिवारों को निमंत्रित किया। 54 वर्ष की दीर्घ अवधि के पश्चात भी उन्हें राज्य के अन्य नागरिकों के समान अधिकार नहीं मिले। उनके बच्चे चाहे कितनी भी शिक्षा प्राप्त कर लें, जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुसार केवल सफाई कर्मचारी की नौकरी के लिये ही पात्र हैं। आज उनके लगभग 600 परिवार हैं लेकिन उनकी आवासीय कॉलोनी को भी अभी तक नियमित नहीं किया गया है।
·         1947 में जम्मू-कश्मीर में पश्चिम पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थी (आज लगभग दो लाख) अभी भी नागरिकता के मूल अधिकारों से वंचित हैं, इनमें अधिकतर हरिजन और पिछड़ी जातियों के हैं। इनके बच्चों को न छात्रवृति मिलती है और न ही व्यावसायिक पाठयक्रमों में प्रवेश का अधिकार है। सरकारी नौकरी, संपत्ति क्रय-विक्रय तथा स्थानीय निकाय चुनाव में मतदान का भी अधिकार नहीं है। 63 वर्षों के पश्चात भी अपने ही देश में वे गुलामों की तरह जीवन जी रहे हैं।
          अनुच्छेद-370 के कारण जम्मू-कश्मीर की पूरे भारत के साथ सहज एकात्मता समाप्त हो गई। कश्मीर घाटी को तो      ऐसा स्थान बना दिया गया है जहां देश का कोई भी व्यक्ति अपने आप को बाहरी अनुभव करता है।
देश चाहता है इन सवालों के जबाव
जम्मू-कश्मीर के विषय में कांग्रेस की नीति पहले से ही अस्पष्ट थी। जम्मू-कश्मीर की गत 63 वर्षों की समस्या का कारण केवल कांग्रेस नेतृत्व की सरकारों द्वारा लिये गये निर्णय हैं। अब समय आ गया है कि देश की जनता को इन सवालों पर हर गली-मोहल्ले-चौक पर कांग्रेस के नेताओं से और विशेषकर नेहरू खानदान से निम्न सवाल करने चाहिए –
1. 1946 में जम्मू-कश्मीर के लोकप्रिय महाराजा को हटाने के लिये नेशनल कांफ्रेंस के तत्कालीन नेता शेख अब्दुल्ला ने ”कश्मीर छोड़ो” (Quit Kashmir) आंदोलन छेड़ा।  वह देश की आजादी का समय था, ऐसे समय किसी भी रियासत में ऐसे आंदोलन का कोई औचित्य नहीं था।
2. विलय होने के पश्चात नेहरू जी एवं उनकी सरकार ने जनमत संगह कराने की अवैधानिक, एकतरफा घोषणा क्यों की ?
5. पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्रों को खाली कराये बिना हम संयुक्त राष्ट्र संघ में 1 जनवरी, 1948 को क्यों गये ? भारत की सेना आगे बढ़कर पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्रों को वापिस लेना चाहती थी, परन्तु उसे अनुमति क्यों नहीं दी गई ? 6. पी.ओ.के. में 50 हजार हिन्दू-सिखों के नरसंहार का जिम्मेदार कौन है?
7. पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (पी.ओ.के.) के लाखों शरणार्थी 63 वर्षों से विस्थापित कैंपों में ही रहते हैं। सरकार जबाव दे कि 63 वर्षों से पी.ओ.के. को वापिस लेने के लिये हमने क्या किया?
8. 1965 एवं 1971 में युध्द जीतने के बाद भी अपने क्षेत्र वापिस लेने के स्थान पर 1972 में शिमला समझौते में छम्ब का क्षेत्र भी हमने पाकिस्तान को क्यों दे दिया ?
9. संविधान सभा में जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व स्वाधीनता अधिनियम 1947, का उल्लंघन कर महाराजा हरिसिंह के स्थान पर शेख अब्दुल्ला की इच्छा के अनुसार नेशनल कांफ्रेंस के प्रतिनिधियों को प्रतिनिधित्व देने के लिये संविधान सभा में प्रस्ताव क्यों लाया गया ? इसी कारण से संविधान निर्माण के समय शेख अब्दुल्ला को अनुच्छेद-370 के लिये दबाव बनाने का मौका मिला।
10. भारत की संविधान सभा में प्रस्ताव लाकर जम्मू-कश्मीर नाम से जम्मू को हटाकर राज्य का नाम कश्मीर रखने का असफल प्रयास पं. नेहरू और गोपालस्वामी अयंगार ने क्यों किया?
11. डा. अंबेडकर, पूरी संविधान सभा, पूरी कांग्रेस पार्टी के विरोध के बाद भी अनुच्छेद-306(ए) (बाद में अनुच्छेद-370) लाने की जिद पं. नेहरू ने क्यों की?
वास्तव में जम्मू-कश्मीर समस्या का मूल जम्मू-कश्मीर में नहीं है अपितु नई दिल्ली की केन्द्र सरकार में निहित है। इसलिये इसका समाधान भी जम्मू-कश्मीर को नहीं पूरे भारत को मिलकर खोजना है। समय आ गया है कि 63 वर्षों की कांग्रेस की नेहरूवादी सोच के स्थान पर भारतीय संविधान की मूल भावना एकजन-एकराष्ट्र को स्थापित किया जाय तथा अलग संविधान, अलग झंडा, अनुच्छेद-370 जैसी अलगाववादी मानसिकता को बढ़ावा देने वाली व्यवस्थाओं को समाप्त किया जाये।
यह आजाद भारत की सबसे बड़ी असफलता है कि 63 वर्षों में लाखों करोड़ रूपये खर्च कर, हजारों सैनिकों के बलिदान के पश्चात भी जम्मू-कश्मीर की देश के साथ मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक एकात्मता उत्पन्न नहीं की जा सकी। अनुच्छेद-370 के कारण वहां हमेशा एक एहसास रहता है कि हमारी एक अलग राष्ट्रीयता है, हम शेष भारत से अलग हैं। यहां का मीडिया एवं नेता हर समय इसे भारत के कब्जे वाला कश्मीर (India occupied Kashmir) ही संबोधित करते हैं।
भारत हर वर्ष अनुदान बढ़ाता रहता है। पिछले 20 वषों में 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की केन्द्रीय सहायता-अनुदान कश्मीर को दिये गये। इससे अधिक विशेष बजटीय प्रावधान किये गये। यह परंपरा बन गयी कि प्रधानमंत्री के प्रत्येक दौरे में हजारों करोड़ के विशेष पैकेज की घोषणा की जाय। परन्तु फिर भी अलगाववाद बढ़ता ही जा रहा है। आवश्यकता है घाटी तथा देश की सभी शक्तियों को बताने की कि अनुच्छेद-370 की समाप्ति, अलग संविधान और अलग निशान की समाप्ति ही अलगाववाद की समाप्ति का एकमात्र उपाय है और यह कार्य तुरन्त होना चाहिये ताकि उमर, महबूबा, गिलानी, मीरवायज एवं शेष देश के मुस्लिम वोट के भूखे, स्वार्थी, सत्तालोलुप नेता कोई नयी दुविधाजनक, राष्ट्रघाती परिस्थिति देश के सामने उत्पन्न न कर सकें


                                                      डॉ० श्यामाप्रसाद मुखर्जी 


 (जन्म: 6 जुलाई, 1901 - मृत्यु: 23 जून, 1953) महान शिक्षाविद्, चिन्तक और भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। एक प्रखर राष्ट्रवादी के रूप में भारतवर्ष की जनता उन्हें स्मरण करती है। एक कट्टर राष्ट्र भक्त के रूप में उनकी मिसाल दी जाती है।
डॉ० मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहाँ का मुख्यमन्त्री (वजीरे-आज़म) अर्थात् प्रधानमन्त्री कहलाता था। ऐसी परिस्थितियों में डॉ० मुखर्जी ने जोरदार नारा बुलन्द किया - "एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान, एक देश में दो विधान - नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगें।" संसद में अपने ऐतिहासिक भाषण में डॉ० मुखर्जी ने धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। उन्होंने तात्कालिन नेहरू सरकार को चुनौती दी तथा अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे। अपने संकल्प को पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नज़रबन्द कर लिया गया। 23 जून, 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। इस प्रकार वे भारत के लिये एक प्रकार से शहीद हो गये। डॉ० श्यामाप्रसाद मुखर्जी के रूप में भारत ने एक ऐसा व्यक्तित्व खो दिया जो हिन्दुस्तान को नयी दिशा दे सकता था।