Sunday, May 15, 2022

उजाला हर हाल में आएगा

तमस घनघोर छाया हो 
असत्य की चहुँओर माया हो
उजाला हर हाल में आयेगा
अंधेरा भाग जाएगा
जानकी की तरह आस रखना
राम पर विश्वास रखना
समुंदर लांघ आएंगे
कपट को चीर जाएंगे
थोड़ी देर जरूर होगी
भले देना होगी
परीक्षा अग्नि की
फिर तो धर्म जीतेगा
सत्य भी जीत जाएगा
असत्य जब हार जाएगा
अंधेरा पनाह ढूंढेगा
उजाला बड़ा दयालु है
राम की तरह कृपालु है
दिया उसे भी जगह देगा
अपने तले में बिठा लेगा
अधर्म का नाश जब होगा
धर्म का राज तब होगा
हर ओर उजाला लाएगी
रोशनी जगमगाएगी
अंधेरों को मिटाएगी 
धर्म ध्वजा लहरायेगी
दीवाली भी तभी आएंगी
राम का राज संग लाएगी.. ।। 
 -: हीतेश शुक्ला

Monday, March 21, 2022

यूपी में भाजपा की जीत के स्क्रिप्ट राइटर है श्री सुनील बंसल

अभाविप की पाठशाला में रचे बसे और तैयार होकर जब देश की  भावी पीढ़ी को राष्ट्रवाद से जोड़ने के काम मे तन्मयता से लगे थे ।  जेएनयू में वामपंथीयों की जड़ हिलाने और दिल्ली विश्वविद्यालय में कांग्रेस अन्य को उखाड़ने वाला नाम सुनील जी ही है । प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और  श्री अमित शाह  और रणनीति कारों ने उनकी क्षमता को  पहचानने वालो ने  उनको  न केवल भाजपा में बुलाया गया  बल्कि  सनागठनात्मक रूप से बिल्कुल कमजोर हो चुके उत्तर प्रदेश का काम सौपा । तो  सिवाय निकट से जानने पहचानने वाले अभाविप और संघ के चुनिंदा लोगों के अलावा किसी ने नही सोचा होगा कि सुनील जी उत्तरप्रदेश जैसे चुनोतीपूर्ण और टेढी मेढ़ी पथरीली राह वाले पूरी तरह  बाहुबली धनबल से संचालित राजनैतिक ढांचे वाले प्रदेश में भेजा तो गया है लेकिन क्या वे सफल हो पाएंगे । लेकिन उन्होंने  सदैव संगठन निर्देश को अपना प्रण मांन कर प्राण झोंक देने वाले परिश्रम से भाजपा की उत्तर प्रदेश में पूर्ण  बहुमत से वापसी  के साथ इतना बड़ा करिश्मा कर  दिखाया जिसका देश  का कोई राजनीतिक पंडित आंकलन नही कर सकता था ।कोई भाजपा का पीके यो कोई जूनियर अमित शाह कहता है । उत्तर प्रदेश जैसे कठिन राज्य जहां स्वानुशासन से नियंत्रण शब्द  सोच से भी परे है वह भी किसी राजनैतिक दल में  लेकिन यह सब साकार कर दिखाने का करिश्मा कर दिखाने वाला नाम है सुनील बंसल । उत्तर भाजपा के संगठन महामंत्री प्रबंधन ,भाजपा उत्तर प्रदेश  की जीत,   कुशल चुनाव संचालक ,जनता की नब्ज जानने वाले और कार्यकर्ताओं को उनकी खूबी केअनुरूप तराशने वाले एक राजनैतिक कार्यकर्ता के  रूप में जाने जाते है ।  सुनील जी के काम को अभाविप के दौरान बहुत करीब से देखा  बहुत संजीदगी के साथ हर काम को करना और जिस आम से आम  काम को  करना उसे ही खास बना देना ।  बेहद ही कुशल वक्ता सुनील जी  हिमाचल प्रदेश के ऊना  में आयोजित अभाविप के राष्ट्रीय अधिवेशन में  राष्ट्रीय सुरक्षा विषय पर उनका वक्तव्य उस अधिवेशन  में उपस्थित देश भर की छात्र शक्ति के दिल दिमाग पर छपने वाला था ।  उन्होंने देश के युवाओं को गजनी की अलार्म की भूमिका देते हुए कहा था" देशद्रोहियों के खिलाफ  देश को जगाने वाली अलार्म की तरह है " । साथ ही  तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा और भ्रष्टाचार के लिए  बदनाम राजग सरकार के  विरुद्ध शंखनाद का आह्वान भी तभी से किया था ।  उंसके बाद भ्रष्टाचार के विरुद्ध  बड़ा अभियान का नेतृत्व कर सरकार पर देश भर में हल्लाबोलने वाले बंसल जी के  कार्यशैली के मुरीद और अनुयायियों को बड़ी संख्या राजस्थान और उत्तरप्रदेश ही नही देश भर में है ।

सुनील बंसल  जी के फेसबुक को ही खंगाल लिया जाए तो उनके अथक परिश्रम की कहानी स्वतः सामने आजाती है  लेकिन केवल सोशल मिडिया तक नही उसका 10 गुना बिना प्रचार के परिश्रम करते है । जब लोकसभा चुनाव के बाद अप्रत्याशित सफलता के श्रेय को  बधाइयाँ देने वालो ने बात की तो जवाब होता था गंभीरता से जवाब आताः था विधानसभा जितना है । विधानसभा जितने पर जब बात करने पर उनका लक्ष्य अगला लोकसभा हो गया । लोकसभा जाते ही वो भाजपा को  फिर से आनेवाले समय और स्थानीय चुनावों की चुनोतियो से निपटने के लिए तैयार करने में जुट गए ।  केवल चुनाव नही संगठन निधि हो या सदस्यता या कोई राष्ट्रीय अभियान उत्तर प्रदेश भाजपा के काम का अगुआ राज्य बनकर उभर गया ।   तमाम सुविधाओ से सुसज्जित वार रूम  से लैस  कार्यालयों की श्रंखला और कार्यालय से  कार्यकर्ताओ को जोड़ने का क्रम खड़ा कर  उत्तर प्रदेश के चरमराये  सनागठनात्मक ढांचे की एक  सुसंगठित स्वरूप दे दिया जिसका लाभ इस चुनाव में भाजपा को मिला ।  उत्तर प्रदेश जीस प्रकृति का राज्य है वहाँ टिकिट वितरण के बाद असंतोष की आवाज तक न आना  बड़ी उपलब्धि  है ।  बेहद शालीन और मृदुभाषी लेकिन काम को लेकर जरा भी कोताही सहन नही करने वाले  सुनील  जी को हर काम मे परफेक्शन पसंद है ।  वे  बहुत अच्छे वक्ता कुशल संगठन कर्ता के साथ बेहतरीन लेखक भी है
  पिछले चुनाव  हो या अन्य अभियान इसके दौरान सैकड़ों नारे और स्लोगन खुद लिखते है । हर अच्छा सुझाव और काम की बात छोटे से छोटे स्थान से मिले सुझाव या बात को  वे बहुत ध्यान से सुनकर डायरी में नोट करना नही भूलते । बंसल जी के नित नूतन चिर पुरातन, और सगठन के लिए कोई कार्यकर्ता अनिवार्य और अपरिहार्य नही है , वे  जीती जागती कार्यकर्ताओं के निर्माण की पाठशाला है  ।व्यक्तित्व में  कृतित्व मेंअभाविप के प्रशिक्षण के वाक्य हर पल झलकते है ।  उन्हें कुशल प्रबंधक के दायरे में बांधना अनुचित होगा ।  अभाविप के 60 वर्ष होने पर किताब" एक आंदोलन देश के लिए" प्रकाशन के दौरान  चर्चा में  बोला शब्द उनके व्यक्तित्व को बयान करता है उनका कहना था कि  हमेशां  बड़े दिखने की  और बोलने की नही बड़े करने की कोशिश में लगे रहना चाहिए । और  बड़ा करने के बाद भी उसका श्रेय लेने की  बजाय देने में विश्वास रखो । अच्छा अगर आप बिल में छुप कर भी करोगे तब भी खुद ब खुद जग जाहिर हो जाएगा । यही कारण है कि सुनील बंसल जी भाजपा की जीत को गढ़ने और रचने महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करने के बाद  टीवी चैनलों के सामने  निरंतर अपने नेतृत्व  प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी  मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी और  संगठन के प्रत्येक कार्यकर्ताओं को श्रेय दे रहे  थे । सुनील बंसल जी के रूप में भाजपा को देश भर में कार्यकर्ताओं के  गढ़ने वाले शिल्पकार के साथ सगठनात्मक काम को आगे बढ़ाने वाला कार्यकर्ता या यह कहा जाए कि भाजपा को  नई पीढ़ी समझने  मन को पढ़ने वाला कुशल रणनीतिकार और  कुशल संगठक मिल गया है ।
 -: हितेश शुक्ला

Friday, October 15, 2021

दशहरा आयेगा तमस मिटाएगा

 


असत्य खूब इठलायेगा

ढेरों षड्यंत्र रचायेगा

धनबल पर दंभ करेगा

संसाधन पर इतरायेगा
ख़ूब करेगा मानमर्दन
रोज हंसी उड़ाएगा
सत्य फिर देगा अग्निपरीक्षा
हर दुःख में करे धर्म की रक्षा
हर कठिनाई सह जाएगा
चरम पर जब पहुंचेंगे पाप
हद से ज्यादा जब होगा अनाचार
फिर अवश्य होगा अवतार
कटेंगे असत्य के पर
होगा अनाचार पर वार
तब धनबल भी काम न आयेगा
अधर्मी अति बढाएगा
अधर्म अस्मिता तक आजायेगा
शक्ति हरण गलती करते ही
पतन का मार्ग अपनाएगा
तप,धन,बल धरा रह जायेगा
विनाश का द्वार खुल जायेगा
एक मानव राम आएगा
दूत सोने की लंका जलाएगा
जागने के अवसर दे जाएगा
चेतावनी है समझोगे तो बच जाओगे
फिर भी न सम्हले तो अतीत बन जाओगे
अधर्म की बुद्धि अति करवाती है
अति विनाश तक जाती है
न चाहकर भी कुमार्ग पर ले जाती है
मर्यादा पुरुषोत्तम को चुनोती दे जाती है
बस वही क्षण होता है
पाप का घड़ा भर जाएगा
तब लगता है कोई आएगा
धर्म ध्वज फहराएगा
असत्य,विधर्मी बच नही पायेगा
अधर्म का विनाश तय हों जायेगा है
धर्म बस इतना विश्वास रखना
सत्य चाहे जितना दुखी होगा
एक दिन असत्य जरूर हारेगा
नवमी आएगी राम को लाएगी
दशहरा आयेगा तमस मिटाएगा

सत्य का प्रकाश फैलाएगा
असत्य अधर्म अन्याय अस्त होंगे
पृथ्वी पर राम सत्योदय करेंगे
सत्य हर हाल में जीत जाएगा
सत्य हर हाल में जीत जाएगा


-: हितेश शुक्ल
शुभ विजय दशहरा







Tuesday, May 25, 2021

ऐसे_थे_हम_सबके_अपने_विजेश_जी

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अपनो की फिक्र रहती थी हर पल उन्हें ।
मदद में फ़रिश्ते सा लड़ जाते वो तूफानों से भी..।।

(5 मई 2021स्मरणांजली -श्री Vijesh Lunawat  जी ) 

    4 से 5 दिन पहले ही मुझे फोन किया " हाँ #हितेश  कहाँ है... कैसा है...यार ध्यान रखना,सावधानी के साथ खुद को बचाते हुए ,जम के जितनी हो सके अपनो की मदद करो,कोई जरूरत हो तो मुझे बताना ,पूछा आप कैसे हो.. वाह, अच्छा बेटा हमने लगाया तो पूछ रहा, अच्छा चल मैं ठीक हूँ बहुत दिन हो गए अपने को मिले कोरोना से निपट लें फिर मिलते है।" विजेश लुणावत मतलब आपकी हर पल बिन कहे चिंता नही मदद करने वाला । अपनो के लिये हर हद पर लड़ जाने वाला । खुद की छोड़ अपनो की फिक्र हरवक्त रही उनको । ऐसा जिंदादिल इंसान की अर्श से फर्श वाला उनके पास जो जाता कुछ लेकर ही जाता । बड़ी से बड़ी मुश्किल सरकार या संगठन का हर मर्ज की दवा थी उनके पास ।  राजनीति से हटकर जो मदद के लिए जाता तैयार रहते थे । कुछ कार्यकर्ता ऐसे होते है जिनकी जरूरत संगठन को रहती है ऐसे ही थे विजेश जी, हर एक के अपने विजेश जी, ऊनके जाने की खबर से हर किसी ने अपना खो दिया । मेरी मुलाकात अभाविप में भोपाल रहने के दौरान  रजनीश जी अग्रवाल के साथ हुई । उनके शुरुआती दिनों में एक साल तक खूब डॉट खाता रहा । मेलजोल और संपर्क लगातार रहा । आखिर उनको स्नेह हो गया, तो बोले बदमाश को इतना भगाने की कोशिश की लेकिन दिल मे बैठ ही गया  । कुछ समय बाद बेहद परेशानियों के दौर में जब लगा कि जीवन और संगठन में अपने लिए कुछ है ही नही तब उन्होंने जोड़ कर रखा  हिम्मत होंसला और ताकत बन विजेश जी और रजनीश भैया ने बड़े भाई और पिता जी के उपचार के दौरान उन्होंने  ताकत ,हिम्मत और साथ दिया मुझे टूटने बिखरने से बचाया मेरे लिए बहुत श्रद्धा के केंद्र थे ।  राजनीतिक क्षेत्र वो योग्यता को तरजीह देने वाले नेता थे । वे  कहा करते थे "राजनीती में बहुत लोग है पर राजनीति को भी योग्यता की जरूरत है " मेरे राजनीतिक नही  हर व्यक्तिगत जीवन के फैसले में शामिल रहते थे । गड़बड़ पर भयावह सार्वजनिक बड़े भाई की डांट हर वक्त थी । उसमें जो अपना पन होता शायद आज कही मिल सके ।  हर किसी की निस्वार्थ मदद करना उनका स्वभाव था । बिन कहे मदद करना उनकी खासियत । दूर रहकर भी बिन कहे अपनो के लिए लड़ जाना उनको सबसे अलग करता है । 
#आखिरी_मुलाकात....
 कुछ माह पहले उनके जन्म दिन के एक दिन पहले मैंने यूँही फोन किया भैया आपकी याद आ रही..तो आजा भोपाल, मैं पहुंच गया फोन किया तो नही उठा ऑफिस पहुंचा नही मिले घर पहुंचा गार्ड ने कहा साहब बाहर हैं, स्वास्थ्य गत कारणों वे से किसी से मिल नही रहे थे। मैंने देखा कि उन्ही का फोन कॉल था  मैंने कहा भाईसाहब मैं मिलने आया हूँ परआप नही है जन्म दिवस की बधाई ...बोले अरे कहाँ है मैंने कहा आपके घर के बाहर..पूजा चल रही थीं छोड़ कर आये तू बैठ मैं पूजा चल रही आता हूँ । उनको देख कर मैं हिल गया भाईसाहब को हो क्या गया दुबले पतले से...कमजोर, सोच रहा था इतने में आगये ,बोले तू तो सही में आ गया बे..मैंने हंसते हुए कहा हाँ और प्रणाम किया , मेरी आँखें पता नही क्यो भर आईं  बोले क्या हुआ रे..चल मिठाई खा ..मैं कुछ बोलने की हिम्मत नही जुटा पाया वो बोले मैं अब ठीक हूँ, तू कैसा है, डरा ही दिया था यार तूने तो.. मुझे तेरी पता चली तो दो दिन डॉ.ने कंट्रोल में है ये नही बताया तब तक तूने बहुत टेंशन दे दिया था । मैंने कहा आपके कारण ठीक हूँ ..बोले मैं भी ...तुम सबके कारण ठीक हूँ । हम सब एक दूसरे के "आत्मबल " हिम्मत   है..बस आखिरी मुलाकात के वक्त उन्होंने इतना और कहा कि जीवन का भरोसा नही यार मिलते रहा करो । अपना ध्यान रखो बड़ों की बात मान लिया कर , बात कर लिया कर । मुझे नही पता था वो मुलाकात आखिरी होगी । उसके बाद मेरी तरह हजारों का आत्मबल सदा के लिए हमको इस तरह तोड़ कर चला जायेगा । ये स्वप्न में नही सोचा । बेहद दुखी मन से अंतिम प्रणाम अश्रुपूरित श्रद्धांजलि👏-: हितेश शुक्ला

आइएमए के बहाने निशाने पर बाबा रामदेव



"एलोपैथी संजीवनी और चिकित्सक है देव दूत" -:
 
           बाबा का समर्थन बिल्कुल एलोपैथी की पद्दति और चिकित्सा जगत का विरोध नही है । कोरोना के इस दौर और इससे पहले भी लगातार मैं और मेरे जैसे करोड़ो को एलोपैथी ने संजीवनी और चिकित्सको ने देवदूत बन नवजीवन दिया है । बाबा की टिप्पणी पर आईएमए का विरोध सही है , लेकिन आईएमए के बहाने किसी और एजेण्डे से झूठा प्रोपेगैंडा खडा कर योग गुरु का विरोध करना अनुचित है । वह भी जब तबकी बाबा ने इस मुद्दे अपनी और से सफाई दी है।खेद भी प्रकट किया है ।
बाबा रामदेव के एलोपैथी चिकित्सा पद्दति को लेकर बयान के बाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन में बाबा पर fir औऱ गिरफ्तारी व कार्यवाही की मांग की इस मुद्दे पर योग गुरु ने विज्ञप्ति जारी कर खेद जताते हुए अपनी बात भी कही है उन्होंने कहा कि चिकित्सा पद्दति और चिकित्सक के श्रम और उनके कार्य समर्पण का सम्मान करते है उनका उद्देश्य कुछ मुद्दों को लेकर है एलोपैथी का नही ।
इस मुद्दे पर देश मे बाबा के विरोधियों ने ima का बहाना लेकर बाबा को फ्रॉड से लगाकर पता नही किन किन उपाधियों से नवाजा है । डॉक्टरों का अपमान बताया जा रहा जबकि वीडियो में ऐसा कुछ नही जिससे डॉ पर उनकी सेवा समर्पण पर उंगली उठाई हो । विवाद में बाबा के विरुद्ध हवा बनाने में ima की आड़ में बड़ी मात्रा में फेक आईडी, वैचारिक विरोधियों के साथ, आर्थिक,सामाजिक,राजनैतिक,धार्मिक, कट्टरता वादी सम्मिलित है । साथ ही मेरा मानना है इस विवाद की तह में वे भी शामिल है जिनको बाबा के उत्पादों के कारण भारी घाटा हो रहा है । आइये इस विवाद को समझते है ।

क्या है बाबा रामदेव पर विवाद -:

बाबा रामदेव ने योग शिविर में एलोपैथी के बारे में किसी राकेश के भेजे हुए,वाट्सएप पर मेसेज को पढ़कर सुनाया मुझे लगता है । दिन में कई मेसेज ऐसे ही हम आप और वाट्सएप यूजर पढ़ते है फॉरवर्ड कर देते है । खेर यहां मुद्दा योगगुरु रामदेव है विवाद यह है कि उन्होंने वाट्सएप के एलोपैथी विरोधी मैसेज पढ़ा और उसमें कुछ विसंगतियों का जिक्र किया और वही कहा जिनका हम भी साइड इफेक्ट के नाम पर अक्सर जिक्र करते है । जिसके बाद उन्होंने अपने बयान जारी कर खेद जताया है । जिसमे देश के डॉ. व चिकित्सा क्षेत्र के सम्मान करता हूँ यह बात भी उन्होंने उसी शिवीर में कही लेकिन बस रामदेव को टार्गेट करना है इसलिए कुछ लोगों ने ima के मुद्दे को हाइजेक कर लिया ।
एलोपैथी पर बयान तो आईएमए का विरोध जायज -:
बाबा रामदेव चूंकि आयुर्वेद योग के समर्थक है । उनका झुकाव व ध्यान अन्य चिकित्सा पद्दतियों की बजाय आयुर्वेद की श्रेष्ठता पर अधिक होना स्वाभाविक है । उनके द्वारा एलोपैथी विरोधी वाट्सएप मेसेज का पढ़ना और उस पर एलोपैथी की कमियाँ साइड इफेक्ट को लेकर सार्वजनिक टिप्पणी आयुर्वेद के पक्ष में या रुझान बढाने में सहयोगी हो सकता है । लेकिन आज सर्वाधिक प्रचलित सर्वाधिक सहज उपलब्ध और तत्काल राहत हेतु एलोपैथिक चिकित्सा पद्दति सर्वाधिक उपयुक्त है । बाबा की पद्दति को लेकर टिप्पणियाँ ऐसे समय जब एलोपैथी पूरी दुनिया के लिए संजीवनी की तरह है । तो इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का वीरोध जायज है । बाबा को भाषा के उपयोग में सावधानी रखनी चाहिए थी ।

टार्गेट पर बाबा रामदेव,मुद्दे को भटकाया -:

जिन्होंने देश के भृष्टाचार पर मुखर होकर सत्ता के खिलाफ मोर्चा खोला था । ये वही रामदेव है जिन्होंने योग और आयुर्वेद को किताबो से निकाल कर सर्वव्यापी बनाने में योगदान दिया है । इन्ही योग गुरु ने पतंजलि के उत्पादों से कई विदेशी घरेलू उत्पादों की छुट्टी कर दी है । सुनीता नारायण की रिपोर्ट से पता चला था कि देश को कोला और पेप्सी पेस्टिसाइड और कई ज़हरीले पदार्थ पिला रहे है ।जन जागरण करयोग गुरू रामदेव ने कोला पेप जैसी कंपनियों को देश मे पानी मांगने पर मजबूर कर दिया है। चाइना के रोग को भारत का कोरोना और कोरोना का भारतीय वेरियंट कहने वाले ।चाइना जीवी विपक्ष, पेड सोशल मीडिया हैंडलर देश की सरकार के विरोधी चुप है। इस विवाद के पीछे हवा देने वाले ये वही राजनीतिक लोग है जो विज्ञान का अपमान कर वैक्सिन का विरोध करते है । और वही दो मुहे लगभग 50 लाख वैक्सिन बर्बाद करवा कर कुछ समय बाद वैक्सिन दो के पोस्टर लगाते है । रामदेव के मसले पर भी चिकित्सा पद्दति पर विवादित तथाकथित टिप्पणि के बहाने सारे वैचारिक और सांस्कृतिक विरोधी आईएमए के विरोध से इतर बस बाबा को डैमेज करने के काम मे जुट गए है ।
(लेख में लेखक के निजी विचार है ) :
 (पत्रकारिता विश्वविद्यालय के शोध छात्र है )
hiteshshukla01@rediffmail.com

Friday, May 6, 2016

शस्त्र शास्त्र के पारंगत और कर्मवीर भगवान परशुराम


{9 मई अक्षयतृतीया भगवान परशुराम जयन्ती} 
परशुराम जी ने कभी क्षत्रियों को संहार नहीं किया. उन्होंने हैहयवंशीय क्षत्रिय  वंश में उग आई उस खर पतवार को साफ किया जिससे क्षत्रिय वंश की साख खत्म होती जा रही थी. जिस दिन भगवान परशुराम को योग्य क्षत्रियकुलभूषण प्राप्त हो गया उन्होंने स्वत दिव्य परशु सहित अस्त्र-शस्त्र राम के हाथ में सौंप दिए

जन्म
जमदग्नि अत्यन्त तेजस्वी महर्षि थे।उनका विवाह प्रसेनजित की कन्या रेणुका से हुआ। रेणुका से उनके पाँच पुत्र हुये जिनके नाम थे रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्’वानस और परशुराम।
भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया को हुआ था ! परशुराम भगवान विष्णु के आवेशावतार है। जी बाल्यकाल से ही ये पार्वती वल्लभ भगवान शंकर की आराधना करने कैलास पर्वत पर चले गये। देवाधिदेव महादेव ने प्रसन्न होकर इन्हें अनेक अस्त्र-शस्त्रों सहित दिव्य परशु प्रदान किया। वह दिव्य परशु भगवान शंकर के उसी महातेज से निर्मित हुआ था जिससे श्री विष्णु के सुदर्शन चक्र और देवराज इंद्र का वज्र बना था। अत्यंत तीक्ष्ण धारवाला अमोघ परशु धारण करने के लिए भगवान ‘राम’का परशु सहित नाम ‘परशुराम’पड़ा।
  परशुराम जी बाल्यकाल से ही अत्यंत वीर, पराक्रमी, अस्त्र-शस्त्र विद्या के प्रेमी, त्यागी, तपस्वी एवम्  सुंदर थे। धनुर्वेद की विधिवत् शिक्षा इन्होंने अपने  पिता से ही प्राप्त की थी।
माता भक्त, पिता के आज्ञाकारी परशुराम जी
श्रीमद्भागवत में दृष्टान्त है कि एक बार माता रेणुका हवन हेतु गंगा तट पर जल लेने व सरितास्नान के लिये गई। गन्धर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख आसक्त हो गयी और कुछ देर तक वहीं रुक गयीं। हवन काल व्यतीत हो जाने से क्रुद्ध मुनि जमदग्नि ने अपनी पत्नी के आर्य मर्यादा विरोधी आचरण एवं मानसिक व्यभिचार करने के दण्डस्वरूप सभी पुत्रों को अपनी माँ का वध कर देने की आज्ञा दी। रुक्मवान, सुखेण, वसु और विश्’वानस ने माता के मोहवश अपने पिता की आज्ञा नहीं मानी, किन्तु परशुराम ने पिता की आज्ञा मानते हुये अपनी माँ का सिर काट डाला। अपनी आज्ञा की अवहेलना से क्रोधित होकर जमदग्नि ने अपने चारों पुत्रों को जड़ हो जाने का शाप दे दिया और परशुराम से प्रसन्न होकर वर माँगने के लिये कहा। इस पर परशुराम बोले कि हे पिताजी! मेरी माता जीवित हो जाये और उन्हें अपने मरने की घटना का स्मरण न रहे। परशुराम जी ने यह वर भी माँगा कि मेरे अन्य चारों भाई भी पुनः चेतन हो जायें और मैं युद्ध में किसी से परास्त न होता हुआ दीर्घजीवी रहूँ। जमदग्नि जी ने परशुराम को उनके माँगे वर दे दिये।
संहार की शपथ
इस घटना के कुछ काल पश्चात एक दिन जमदग्नि ऋषि के आश्रम में कार्त्तवीर्य अर्जुन आये। जमदग्नि मुनि ने कामधेनु गौ की सहायता से कार्त्तवीर्य अर्जुन का बहुत आदर सत्कार किया। कामधेनु गौ की विशेषतायें देखकर कार्त्तवीर्य अर्जुन ने जमदग्नि से कामधेनु गौ की माँग की किन्तु जमदग्नि ने उन्हें कामधेनु गौ को देना स्वीकार नहीं किया। इस पर कार्त्तवीर्य अर्जुन ने क्रोध में आकर जमदग्नि ऋषि का वध कर दिया और कामधेनु गौ को अपने साथ ले जाने लगा। किन्तु कामधेनु गौ तत्काल कार्त्तवीर्य अर्जुन के हाथ से छूट कर स्वर्ग चली गई और कार्त्तवीर्य अर्जुन को बिना कामधेनु गौ के वापस लौटना पड़ा।
इस घटना के समय वहाँ पर परशुराम उपस्थित नहीं थे। जब परशुराम वहाँ आये तो उनकी माता छाती पीट-पीट कर विलाप कर रही थीं। अपने पिता के आश्रम की दुर्दशा देखकर और अपनी माता के दुःख भरे विलाप सुन कर परशुराम जी ने इस पृथ्वी पर से  हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं के संहार करने की शपथ ले ली। पिता का अन्तिम संस्कार करने के पश्चात परशुराम ने कार्त्तवीर्य अर्जुन से युद्ध करके उसका वध कर दिया। इसके बाद उन्होंने इस पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से रहित कर दिया और उनके रक्त से समन्तपंचक क्षेत्र में पाँच सरोवर भर दिये। अन्त में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोक दिया। अब परशुराम ब्राह्मणों को सारी पृथ्वी का दान कर महेन्द्र पर्वत पर तप करने हेतु चले गये हैं
न्याय के लिए हमेशा युद्ध करते रहे
वे न्याय के लिए हमेशा युद्ध करते रहे, कभी भी अन्याय को बर्दाश्त नहीं किया. न्याय के प्रति उनका समर्पण इतना अधिक था कि उन्होंने हमेशा अन्यायी को खुद ही दण्डित भी किया । 
अमर है, परशुराम जी
  कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें कल्प के अंत तक तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया।
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनुमांश्च विभीषण
कृपरू परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनरू।। - श्रीमद्भागवत महापुराण
 पौराणिक परंपरा में जिन सात व्यक्तियों को अजर अमर माना गया है, उनमें परशुराम एक हैं। कहते हैं कि राम के शौर्य, पराक्रम और धर्मनिष्ठा को देख कर वे हिमालय चले गए थे। उन्होंने बुद्धिजीवियों और धर्मपुरुषों की रक्षा के लिए उठाया परशु त्याग दिया।
 तप, स्वाध्याय शिक्षण और लोकसेवा छोड़कर आपद्धर्म के रूप में शस्त्र उठाने का प्रायश्चित करने के लिए हिमालय क्षेत्र में समय व्यतीत किया। क्योंकि परशुराम चिरजीवी हैं, इसलिए माना जाता है कि आज भी सशरीर वे हिमालय के किन्हीं अगम्य क्षेत्रों में निवास करते हैं। परशुराम का कार्य क्षेत्र गोमांतक (गोवा) कहा जाता है। राम से साक्षात्कार होने और उन्हें अवतार के रूप में पहचानने के बाद वे हिमालय चले गए। ऋषि धर्म के विपरीत शस्त्र उठाने का प्रायश्चित करने के लिए कहते हैं कि परशुराम ने हिमालय की घाटी में फूलों की घाटी बसाई।
समाज सुधार व कृषि के प्रकल्प हाथ में लिए
 परशुराम जी ने समाज सुधार व कृषि के प्रकल्प हाथ में लिए। केरल,कोंकण मलबार और कच्छ क्षेत्र में समुद्र में डूबी ऐसी भूमि को बाहर निकाला जो खेती योग्य थी। इस समय कश्यप ऋषि और इन्द्र समुद्री पानी को बाहर निकालने की तकनीक में निपुण थे। अगस्त्य को समुद्र का पानी पी जाने वाले ऋषि और इन्द्र का जल-देवता इसीलिए माना जाता है। परशुराम ने इसी क्षेत्र में परशु का उपयोग रचनात्मक काम के लिए किया। शूद्र माने जाने वाले लोगों को उन्होंने वन काटने में लगाया और उपजाउ भूमि तैयार करके धान की पैदावार शुरु कराईं। इन्हीं को परशुराम ने शिक्षित व दीक्षित करके ब्राहम्ण बनाया। इन्हें जनेउ धारण कराए। और अक्षय तृतीया के दिन एक साथ हजारों युवक-युवतियों को परिणय सूत्र में बांधा। परशुराम द्वारा अक्षयतृतीया के दिन सामूहिक विवाह किए जाने के कारण ही इस दिन को परिणय बंधन का बिना किसी मुहूर्त्त के शुभ मुहूर्त्त माना जाता है। दक्षिण का यही वह क्षेत्र हैं जहां परशुराम के सबसे ज्यादा मंदिर मिलते हैं और उनके अनुयायी उन्हें भगवान के रुप में पूजते हैं
मार्शल आर्ट में योगदान
भगवान परशुराम शस्त्र विद्या के श्रेष्ठ जानकार थे। परशुराम केरल के मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु की उत्तरी शैली वदक्कन कलरी के संस्थापक आचार्य एवं आदि गुरु हैं।ख्1, वदक्कन कलरी अस्त्र-शस्त्रों की प्रमुखता वाली शैली है।

       -हितेश शुक्ला, पत्रकारिता-  शोध छात्र एवं
 प्रदेश मीडिया प्रभारी भारतीय जनता युवा मोर्चा ,मध्य प्रदेश
mob . 9407463777


Thursday, July 30, 2015

देशभक्त कलाम को प्रणाम....

                   
   हे कलाम... फिर किसी अशिअम्मा जैनुलाब्दीन जैसी माँ की कोख से किसी जैनुलाब्दीन मराकायर पिता के घर में... भारत माँ का गौरव बढाने भारत भूमि पर जल्दी आना.... और ईश्वर से प्रार्थना है उन्हें स्वर्ग में स्थान न दे भारत की भूमि को स्वर्ग बनाने उन्हें फिर से इस भूमि पर भेजे " देशभक्त कलाम को प्रणाम .....