Tuesday, May 25, 2021

ऐसे_थे_हम_सबके_अपने_विजेश_जी

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अपनो की फिक्र रहती थी हर पल उन्हें ।
मदद में फ़रिश्ते सा लड़ जाते वो तूफानों से भी..।।

(5 मई 2021स्मरणांजली -श्री Vijesh Lunawat  जी ) 

    4 से 5 दिन पहले ही मुझे फोन किया " हाँ #हितेश  कहाँ है... कैसा है...यार ध्यान रखना,सावधानी के साथ खुद को बचाते हुए ,जम के जितनी हो सके अपनो की मदद करो,कोई जरूरत हो तो मुझे बताना ,पूछा आप कैसे हो.. वाह, अच्छा बेटा हमने लगाया तो पूछ रहा, अच्छा चल मैं ठीक हूँ बहुत दिन हो गए अपने को मिले कोरोना से निपट लें फिर मिलते है।" विजेश लुणावत मतलब आपकी हर पल बिन कहे चिंता नही मदद करने वाला । अपनो के लिये हर हद पर लड़ जाने वाला । खुद की छोड़ अपनो की फिक्र हरवक्त रही उनको । ऐसा जिंदादिल इंसान की अर्श से फर्श वाला उनके पास जो जाता कुछ लेकर ही जाता । बड़ी से बड़ी मुश्किल सरकार या संगठन का हर मर्ज की दवा थी उनके पास ।  राजनीति से हटकर जो मदद के लिए जाता तैयार रहते थे । कुछ कार्यकर्ता ऐसे होते है जिनकी जरूरत संगठन को रहती है ऐसे ही थे विजेश जी, हर एक के अपने विजेश जी, ऊनके जाने की खबर से हर किसी ने अपना खो दिया । मेरी मुलाकात अभाविप में भोपाल रहने के दौरान  रजनीश जी अग्रवाल के साथ हुई । उनके शुरुआती दिनों में एक साल तक खूब डॉट खाता रहा । मेलजोल और संपर्क लगातार रहा । आखिर उनको स्नेह हो गया, तो बोले बदमाश को इतना भगाने की कोशिश की लेकिन दिल मे बैठ ही गया  । कुछ समय बाद बेहद परेशानियों के दौर में जब लगा कि जीवन और संगठन में अपने लिए कुछ है ही नही तब उन्होंने जोड़ कर रखा  हिम्मत होंसला और ताकत बन विजेश जी और रजनीश भैया ने बड़े भाई और पिता जी के उपचार के दौरान उन्होंने  ताकत ,हिम्मत और साथ दिया मुझे टूटने बिखरने से बचाया मेरे लिए बहुत श्रद्धा के केंद्र थे ।  राजनीतिक क्षेत्र वो योग्यता को तरजीह देने वाले नेता थे । वे  कहा करते थे "राजनीती में बहुत लोग है पर राजनीति को भी योग्यता की जरूरत है " मेरे राजनीतिक नही  हर व्यक्तिगत जीवन के फैसले में शामिल रहते थे । गड़बड़ पर भयावह सार्वजनिक बड़े भाई की डांट हर वक्त थी । उसमें जो अपना पन होता शायद आज कही मिल सके ।  हर किसी की निस्वार्थ मदद करना उनका स्वभाव था । बिन कहे मदद करना उनकी खासियत । दूर रहकर भी बिन कहे अपनो के लिए लड़ जाना उनको सबसे अलग करता है । 
#आखिरी_मुलाकात....
 कुछ माह पहले उनके जन्म दिन के एक दिन पहले मैंने यूँही फोन किया भैया आपकी याद आ रही..तो आजा भोपाल, मैं पहुंच गया फोन किया तो नही उठा ऑफिस पहुंचा नही मिले घर पहुंचा गार्ड ने कहा साहब बाहर हैं, स्वास्थ्य गत कारणों वे से किसी से मिल नही रहे थे। मैंने देखा कि उन्ही का फोन कॉल था  मैंने कहा भाईसाहब मैं मिलने आया हूँ परआप नही है जन्म दिवस की बधाई ...बोले अरे कहाँ है मैंने कहा आपके घर के बाहर..पूजा चल रही थीं छोड़ कर आये तू बैठ मैं पूजा चल रही आता हूँ । उनको देख कर मैं हिल गया भाईसाहब को हो क्या गया दुबले पतले से...कमजोर, सोच रहा था इतने में आगये ,बोले तू तो सही में आ गया बे..मैंने हंसते हुए कहा हाँ और प्रणाम किया , मेरी आँखें पता नही क्यो भर आईं  बोले क्या हुआ रे..चल मिठाई खा ..मैं कुछ बोलने की हिम्मत नही जुटा पाया वो बोले मैं अब ठीक हूँ, तू कैसा है, डरा ही दिया था यार तूने तो.. मुझे तेरी पता चली तो दो दिन डॉ.ने कंट्रोल में है ये नही बताया तब तक तूने बहुत टेंशन दे दिया था । मैंने कहा आपके कारण ठीक हूँ ..बोले मैं भी ...तुम सबके कारण ठीक हूँ । हम सब एक दूसरे के "आत्मबल " हिम्मत   है..बस आखिरी मुलाकात के वक्त उन्होंने इतना और कहा कि जीवन का भरोसा नही यार मिलते रहा करो । अपना ध्यान रखो बड़ों की बात मान लिया कर , बात कर लिया कर । मुझे नही पता था वो मुलाकात आखिरी होगी । उसके बाद मेरी तरह हजारों का आत्मबल सदा के लिए हमको इस तरह तोड़ कर चला जायेगा । ये स्वप्न में नही सोचा । बेहद दुखी मन से अंतिम प्रणाम अश्रुपूरित श्रद्धांजलि👏-: हितेश शुक्ला

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